short motivational story in hindi, kahani in hindi
Table of contents
2. Story of expectation लक्ष्य पाने की कहानी
प्रस्तावना :—
हिंदी कहानियां जिसे पढ़ने के पश्चात एक अलग उत्साह एवं मन आनंदित होने लगती है। हिंदी कहानी पहले दादा दादी सुनाएं करते थे। जिससे बच्चे सुनकर नैतिक मूल्यों को जान पाते थे। लेकिन आज के समय में बहुत मुश्किल से ऐसा हो पता है।
आप भी अपने बच्चों को या भाई-बहन को ऐसे छोटी-छोटी कहानी आवश्यक बताया करें जिससे वे भी कुछ सीख सके। यदि हम बच्चे को क्या सही है? क्या गलत है? यह सीधे तौर पर बताएं तो वह कुछ नहीं सीख पाता है। लेकिन यदि हम सही गलत की राह को कहानियों के माध्यम से उन्हें बताएं तो बच्चे उन्हें अवश्य सुनते हैं। तब हम क्या सही है और क्या गलत है? आसानी से बता सकते हैं। इन सब से बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास होता है।
आज हम लाए हैं तीन ऐसी ही कहानी जो प्रेरणा के साथ-साथ मनोरंजन भी खूब होगी। तीनों कहानी एक से बढ़कर एक है, इसे ध्यान से एक बार अवश्य पढ़े और अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें।
Story of expectation लक्ष्य पाने की कहानी
बात उन दिनों कि है जब कविता अपने पापा के साथ रहती थी। कविता की माँ बहुत पहले ही गुजर गई थी। वे दोनों बहुत ही खुसी - खुशी रहते थे। कविता को अपने पिता जी से बहुत ही expectation थी। कविता job work करती थी। उसके पिता जी भी किसी कम्पनी मे काम करते थे। हप्ते मे एक दिन दोनों का छुट्टी रहते थे। उस दिन दिनों घूमने के लिए जाया करते थे।
एक दिन कविता और उसके पापा दोनों कार मे घूमने के लिए निकले थे। कविता car driving कर रहीं थी। अचानक रास्ते मे तूफान आ गया। काविता अपने पिता जी से कहती है- "पापा चलो वापस घर लौट जाते हैं यहाँँ तूफान आया हैं।" उसके पिता जी कविता से कहते है - "नहीं बेटा तुम आगे गाड़ी चलाओ" कविता फिर आगे गाड़ी चलाने लगती है।
आगे तूफान और भी गहरा हो जाता है। कुछ गाडियां रास्ते पर हि खड़ा हो गया था। तभी कविता अपने पिता से कहती हैं - "पापा तूफान काफी तेज हो गई है और यहाँँ पर गाडियां भी खड़ा हो गई है कोई आगे नहीं जा रहे है,कार को यही रोक दूँ क्या?" फिर उसके पिता कविता के शब्दोंं को काटते हुए कहते है । नहीं बेटा, तुम आगे कार चलाओ, रुकना नहीं है। कविता अपने पिता जी से बहुत expectation करती थी। वह गाड़ी नहीं रोकी।
आगे जाने पर तूफान एकदम सा थम गया था। फिर उसके पिता जी कहते है। बेटी अब तुम कर रोक सकती हो। और नीचे उतरने के लिए कहा। कविता ने कार रोकी और नीचे उतरकर
पिता से सवाल किया कि क्यो अभी कार रोके है पहले क्यों नहीं?
उसके पिता जी कहते है। बेटी तुम पीछे मुड़कर देखो तुम्हें कोई नज़र आ रहा है। नहीं, कविता बोलती है। बेटी वे सभी पीछे इसलिए हो गए क्योंकि वे सभी मुसीबत को सामने देख बेबस होकर रुक गए और तुम आगे इसलिए आई हो क्योंकि तुमने मुसीबत का डट कर सामना किया तथा रुके नहीं।
Moral of the story :-
सफलता उन्हीं लोगों को मिलती है जो पीछे मुड़कर कभी नही देखते, अपने धुन में ही चलते है। आशा करते है यह कहानी आपको पसंद आया होगा। इस कहानी सबसे अच्छी बात क्या लगी हमे जरूर बताए।
ईमेल एड्रेस
ये कहानी है एक लड़के की, जो बहुत हि सरल स्वाभाव,मेहनती और अपने काम के प्रति ईमानदार था। इनके पापा भी अभी कुछ समय पहले हि गुजर गए थे। अब घर की सारी जिम्मेदारियां इनके कन्धो पर ही आ गई। इसी बात को ख्याल मे रखकर जॉब की तालाश मे ईधर - उधर भटकता रहा। एक दिन अख़बार मे एक ऐड देखकर बुलाए गए ऑफ़िस मे जॉब इंटरव्यू देने के लिए चला गया।
उस ऑफिस मे आए सभी लोग पारी पारी अपना इंटरव्यू देकर चलें गए। अब उस लड़के का नंबर आ गया। उससे भी कई सारी सवाल कीए उस लड़के ने सभी सवालों का जवाब बखूबी अच्छे से दिए। इंटरव्यूअर खुश हो गए, वे सभी आपस में चर्चा करने लगे की इसे काम में रख लेना चाहिए।
इंटरव्यूअर लड़के से बोला - "सुनो तुम अपना ईमेल ऐड्रेस हमें दे दो। हम तुम्हें फार्म देंगे, उसमें तुम अपना सारा डिटेल भर कर हमें सेंड कर देना।"
इंटरव्यूअर की बात सुनकर लड़के ने कहा - "सॉरी मेरे पास कोई ईमेल एड्रेस नहीं है"
यह क्या कह रहे हो, तुम्हारे पास ईमेल एड्रेस नहीं है। तो फिर तुम क्या काम कर पाओगे? अब यह दौर इंटरनेट का हो गया है इसके बिना तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे। और न जाने ऐसी कई सारे बातें उस लड़के को सुनाया।
वह लड़का दुःखी होकर वंहा से निकल गया। अब मुझे घर चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करना हि पड़ेगा। ऐसे सोचते हुए जा हि रहा था, रास्ते मे सब्जी मंडी आया। उसने अपने जेब को देखा, मात्र 200रु हि थे। उस पैसे से उसने एक कैरेट टमाटर खरीद लिया। फिर वे गलियों मे गुमकर साम होते-होते टमाटर को बेच दिया। उसने देखा कि उसे 500 रुपए का मुनाफा हुआ है। वे बहुत खुश हुए। उसने अगले दिन दो कैरेट टमाटर खरीदा और गलियों मे घूमकर बेच दिया। फिर अगले दिन चार कैरेट फिर आठ कैरेट ऐसे करते-करते उन्होंने खुद का हि फल-सब्जी का दुकान खोल लिया। उसका दुकान खूब चलने लगा। वे वहां खूब प्रसिद्द हुए लोग उनके बारे मे चर्चा करने लगे।
चर्चा मे होने के कारण अखबार वाले उनका स्टोरी कवर करने के लिए इंटरव्यू लेने आए, उसने अपना पूरा इंटरव्यू दिया। अखबार वाले ने बोला "तुम अपना ईमेल एड्रेस मुझे दे दो मै तुम्हें इस इंटरव्यू का एक प्रति सेंड कर दूंगा।
फिर उस लड़के ने कहा " मेरे पास यदि ईमेल एड्रेस होता तो मैं यहां पर नहीं होता, लड़के ने अपनी सारी बात उसे सुनाया।
Moral of the story
ये कहानी हमें बहुत बड़ी सीख दे जाती है। यदि आपके पास किसी चीज़ कि कमी है तो उस कमी को अपनी ताकत बनाओ। और हर हाल मे तुम मेहनत करते जाओ कामयाबी आपके कदमों मे होगी। तुम भी कुछ ऐसा कर दिखाओ की दुनिया भी तुम्हारे जैसा हि करने लगे। ये कहानी आपको कैसे लगी हमें कमेंट जरूर करें।
शरारती मोहन की कहानी
समस्या तो हर किसी के जीवन मे आता है। कोई इस समस्या का हल आसानी से निकाल लेता है और कोई इस समस्या कि गुथ्थी मे फस जाता है। आज कि हमारी कहाँनी है एक छोटे से नन्हे से 10 साल के बच्चे मोहन की। कि कैसे वह अपने माँ द्वारा दिए गए मुश्किल काम को आसानी से कर लेता है। कहानी को अंत तक जरूर पड़े। मैं आशा करता हूँ कि कहानी के अन्त मे आपको कुछ न कुछ सीखने को जरूर मिलेगा।
बात उन दिनों कि है जब मोहन 10 साल का होता है। वे बहुत हि शरारती था। मस्ती भी बहुत करते थे, सभी उनसे परेशान रहते थे, और मोहन से खूब प्यार करते भी। उनमें एक खास बात थी। वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे, सभी से खूब सवाल करते थे। कुछ तो ऐसे ऊटपटांग सवाल करते जिनका जवाब किसी को मालूम हि नहीं होता था। बिल्कुल परेशान करके रख देते थे।
एक दिन माँ घर पर हि ऑफिस वर्क कर रही थी। मोहन अपनी माँ को परेशान हि कर रखा था। माँ उसको एक मुश्किल कार्य देना चाहि जिससे वे कुछ कुछ घंटे उसी मे अटके रहे जिससे मैं भी आराम से अपने काम को पूरा कर लुंगी। लेकिन वे असफल हो जाती है। आगे देखते है कि वह क्या काम थे।
दरअसल काम यह था कि माँ ने वहीं पास रखी पुरानी बूक से नक्से वाले पन्ने को फाडा और उसके कई सारे टुकड़े कर दिए, और बोली "बेटा तुम इन पन्नो के टुकड़ो को जोड़कर नक्सा को पूरा करके मुझे दिखाओ।" मोहन को उस कागज के टुकड़ो को जोड़ने मे सिर्फ तीन मिनट हि लगता है। "माँ देखो मैंने नक्सा को पूरा बना लिया है।" माँ मोहन से पूछती है- "तुमने इतनी जल्दी इसे कैसे बना लिया?" तब मोहन माँ से बोलता है! "माँ आपने ध्यान नहीं दिया नक्से के दूसरे तरफ कार्टून बना हुआ था मैंने उस कार्टून को पूरा बनाया, नक्से अपने आप हि बन गया।" माँ मोहन को देखते हि रह गई।
Moral of the story
दोस्तों कई सारे लोग इस उलझन मे रहते है कि इतना मुश्किल कार्य मैं कैसे कर पाऊँगा या इसे करने मे बहुत टाइम वेस्ट होगा आदि - आदि लेकिन वे उस समस्या का दूसरा पहलु देख नहीं पाते है। बेहतर यही होगा कि आप सांत दिमाग से पहले सोच समझ ले कि मैं इस काम को और किस - किस प्रकार से कर सकता हूँ। अर्थात समस्या के हर पहलु पर नज़र डालना चाहिए। जिससे आपको समझ मे आ जाएगा कि किस कार्य को किस प्रकार करना चाहिए। ये अनुभव वृद्दि मे भी सहायक साबित होंगे।
निष्कर्ष :-
आशा करता हूं यह तीनों कहानियां आपको बहुत पसंद आया होगा। ये कहानियां हमे उत्साह से भर देता है। इन कहानियों को पड़ने के बाद उत्साह, प्रेरणा के साथ साथ कुछ अवश्य सीखने को मिला होगा आप कॉमेंट कर हमे बताए कि इन तीनो कहानियों से क्या सीखने को मिला।
धन्यवाद,
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